दीध-निकाय

20. सहासमय-सुत्त (२।७)

१—बुद्धके दर्शनार्थ देवताओका आगमन । २—देवताओके नाम-गॉव आदि । ३ —मारका भी सदलबल पहुँचना ।

ऐसा मैने सुना—एक समय भगवान् पाँचसौ सभी अर्हत् भिक्षुओके बळे संघके साथ शाक्य देशमे कपिलवस्तुके महावनमे विहार कर रहे थे । उस समय भगवान् और भिक्षुसंघके दर्शनके लिये दश-लोकधातुओके बहुतसे देवता इक़ट्ठे हुए थे ।

१—बुद्धके दर्शनार्थ देवताओका आगमन

तब चारो शुद्धावास लोक के देवताओके मनमे यह हुआ—यह भगवान् शाकयदेशमे ० विहार कर रहे है । ० इकट्ठे हुए है । क्यो न हम भी भगवानके पास गाथा कहे ।

तब वे देवता, जैसे बलवान् ० वैसे शुद्धावास देवलोकमे अन्तर्धान हो भगवानके सामने प्रकट हुए । तब वे देवता भगवानको अभिवादनकर एक ओर खळे हो गये । एक ओर खळे हो एक देवताने भगवानसे गाथामे यह कहा——

“इस वनमे देवताओका यह महासमूह एकत्रित हुआ है । हम लोग भी

इस अजेय संघके दर्शनार्थ इस धर्म सम्मेलनमे आये हुए है ।।१।।”

तब दुसरे देवताने भगवानके सामने गाथामे यह कहा—

“भिक्षु लोग अपने चित्तको सीधाकर (वैसेही) समाहित (=ध्यानमे लीन) होते है,

पण्डित लोग लगाम ताने सारथीकी भॉति अपनी इन्द्रियोको वशमे रखते है ।।२।।”

तब दूसरे देवताने—

“राग आदि रुपी कण्टक, परिघ (=अर्गल) तथा रोळेको नष्टकर ज्ञानी (जन) शुद्ध,

विमल, दान्त और श्रेष्ठ होकर विचरण करते है ।।३।।”

तब दुसरे देवताने—

“जो लोग बुद्धकी शरणमे गये है वे नरकमे नही पळेगे ।

मनुष्य-शरीरको छोळ कर देव-शरीरको पावेगे ।।४।।”

तब भगवानने भिक्षुओको संबोधित किया——“भिक्षुओ । तथागत और भिक्षुसंघके दर्शनार्थ दसो लोकधातुके बहुतसे देवता इकट्ठे हुए है । भिक्षुओ । अतीतकालमे जो अर्हत् सम्यक् सम्बुद्ध हो गये है उन्हे भी (देखनेके लिये) इतने ही देवता इकट्ठे हुए थे, जितने कि इस समय मुझे देखनेके लिये ।

“भिक्षुओ । मै देवशरीरधारियोके नामको कहता हूँ, ० वर्णन करता हूँ, ० के नामका उपदेश करता हूँ । उसे सुनो, मनमे लाओ ।”

२०—सहासमय-सुत्त

२—देवताओके नाम-गाँव आदि

“अच्छा भन्ते ।” कह, उन भिक्षुओने भगवानको उत्तर दिया ।

भगवानने कहा—

“पृथ्वीपर भिन्न भिन्न स्थानोमे, पहाळकी कन्दराओमे रहनेवाले

जो संयमी और समाहित (ध्यानारूढ) देवता है उनके विषयमे मै कहता हूँ ।।५।।

सिंहके समान दृढ, भयरहित, रोमांचरहित,

पवित्र मनवाले, शुद्ध, प्रसन्न, निर्दोष, ।।६।।

पॉचसौ बुद्धधर्म (=शासन)मे रत श्रावकोको

कपिलवस्तुके वनमे बुद्ध (=शास्ता)ने संबोधित किया ।।७।।

‘जो देवशरीरधारी आये हुए है, उन्हे भिक्षुओ । जानो (दिव्यचक्षुसे देखो) ।’

उन (भिक्षुओ)ने बुद्धकी आज्ञाको सुनकर उत्साह (साहस ?) किया ।।८।।

‘देवोके देखने योग्य उन्हे ज्ञान उत्पन्न हो गया ।

और कितनोने सौ, हजार और सत्तर हजार देवता देखे ।।९।।

कितनोने सौ हजार देवता देखे ।

कितनोने सभी दिशाओको अनन्त देवोसे पूर्ण देखा ।।१०।।

तब सर्वदृष्टा शास्ताने वह सब देख और जान

धर्म (=शासन)मे रत श्रावकोको संबोधित किया ।।११।।

जितने देवशरीरधारी आये हुए है उन्हे भिक्षुओ । जानो,

मैं क्रमानुसार उनके विषयमे कहता हूँ ।।१२।।

“कपिलवस्तुमे रहनेवाले ऋद्धिमान्, द्युतिमान्, सुन्दर और यशस्वी सात हजार भूमि देवता,

यक्ष प्रसन्नतापूर्वक इस वनमे भिक्षुओके सम्मेलन (को देखनेके लिये) आये हुए है ।।१३।।

“हिमालयपर रहनेवाले ऋद्धिमान्, ० रग विरगके छै हजार यक्ष प्रसन्नतापूर्वक० ।।१४।।

“सातागिरि पहाळपर रहनेवाले ० ।।१५।।

और दूसरे सोलह हजार यक्ष ० ।।१६।।

वेस्सामित्त पर्वतपर रहनेवाले पॉचसौ यक्ष ० ।।१७।।

“राजगृहका कुम्भीर यक्ष, जो वेपुल्लपर्वतपर रहता है,

और एक लाखसे भी अधिक यक्ष जिसकी सेवा करते है,

वह भी वनके इस सम्मेलनमे आया हुआ है ।।१८।।

“गन्धर्वोके अधिपति यशस्वी महाराज धतरट्ठ (=धृतराष्ट्र) पूर्व दिशामे विराजमान है ।।१९।।

“ऋद्धिमान् ० इन्द्र (=इन्द्र) नामधारी उनके अनेक महाबली पुत्र ० आये है ।।२०।।

“कुम्भण्डो (=कष्माड)के अधिपति यशस्वी

महाराज विरूढक दक्षिण दिशामे विराजमान है ।।२१।।

“ऋद्धिमान् ० इन्द्र नामधारी उनके भी अनेक महाबली पुत्र ० आये है ।।२२।।

“नागोके अधिपति ० विरूपाक्ष पश्चिम दिशामे विराजमान है ।।२३।।

“ऋद्धिमान् ० इन्द्र नामधारी उनके भी अनेक महाबली पुत्र ० आये है ।।२४।।

“यक्षोके अधिपति ० वैश्रवण (=कुबेर) उत्तर दिशामे बिराजमान है ।।२५।।

“ऋद्धिमान् ० इन्द्र नामधारी उनके भी अनेक महाबली पुत्र ० आये है ।।२६।।

“पूर्वमे धृतराष्ट्र, दक्षिणमे विरूढक, पश्चिममे विरूपाक्ष (और) उत्तरमे वैश्रवण ।।२७।।

‘कपिलवस्तुके वनमे ये चारो महाराज चारो दिशाओमे चमक रहे है ।।२८।।

‘उनके मायाधारी, वश्चक ओर शठ दासभृत्य भी आये हुए है,

जिनके नाम—माया, कूटेण्ट, वेटेण्ड, विटुच्च विटुर ।।२९।।

चन्दन, कामसेटृ, किनुघण्डु, निघण्डु, पनाद, ओपमञ्ञ

और देवपुत्र मातलि, चित्तसेनो ओर जननायक गन्धर्व नल राजा ।।३०।।

“पञ्चशिख तिम्बरु, सूर्यवर्चस् तथा ओर दूसरे गन्धर्वराजा

राजाओके साथ प्रसन्नतापूर्वक ० आये है ।।३१।।

आकाशवासी और वैशालीमे रहनेवाले नाग अपनी अपनी सभाके साथ आये है । कम्बल अश्वतर (=अस्सतर) अपने बन्धु-बान्धवोके साथ प्रयाग (प्रयागवाले) भी आये है ।।३२।।

यामुन (=यमुनावासी) ओर धृतराष्ट्र नामक यशस्वी नाग आये है ।

महानाग ऐरावण भी वनके सम्मेलनमे आये है ।।३३।।

वे विशुद्ध दिव्यचक्षुवाले पक्षी, जो नागराजाओके वाहन है,

आकाशमार्गसे इस वनमे पहुँचे है । चित्र ओर सुपर्ण उनके नाम है ।।३४।।

“वहॉ नागराजाओको भय न था । भगवान् बुद्धने गरुडोसे उन्हे रक्षा प्रदान की थी ।

मीठे वचनोमे परस्पर सलाप करते हुए वह नाग ओर गरुड बुद्धकी शरणमे गये ।।३५।।

समुद्रके आश्रित असुर, जिन्हे इन्द्रने पराजित किया था ।

वे ऋद्धिमान् ओर यशस्वी (असुर) इन्द्रके भाई हो गये ।।३६।।

‘कालक (नामक असुर) बळे भयंकर रुपमे आया ।

वेमचिति, सुचित, पहराद (प्रह्लाद) और नमुचि नामक असुर धनुष लिये हुए आये ।।३७।।

“सभी राहु नामवाले बलिके सौ पुत्र अपनी सेनाओको सजाकर राहुभद्रके पास गये । (और बोले) हे भदन्त । वनमे भिक्षुओकी समिति हो रही है ।।३८।।

जल, पृथ्वी, तेज तथा वायुके देवता वहॉ आये है । वरुण, वारण, सोम

और यश यशस्वी, मैत्री तथा करुणा शरीरवाले देव वहॉ आये है ।।३९।।

“ये दस, दस प्रकारके शरीरवाले, सभी रंग विरंगे ऋद्धिमान् ० ।।४०।।

“वेण्डुदेव, सहली, असम ओर दो सम,

चन्द्रमाके देवता चन्द्रमाको आगे करके आये है ।।४१।।

“सूर्यके देवता सूर्यको आगे करके आये है ।

मन्दबलाहक देवता नक्षत्रोको आगे करके आये है ।

वसु देवताओमे श्रेष्ठ वासव, शक्र, इन्द्र भी आये है ।।४२।।

“ये दस, दस प्रकारके शरीरवाले, सभी रंग विरंगे ऋद्धिमान् ० ।।४३।।

“अग्नि-शिखासे दहकते सहभू देव आये है । अलसीके फूलकी

आभाके सदृश शरीरवाले अरिट्ठक राजा आये है ।।४४।।

वरुण, सहधम्म, अच्चुत, अनेजक, सूलेय्य,

रुचिर ओर वासवन-निवासी देवता आये है ।।४५।।

“ये दस, दस प्रकारके शरीरवाले, सभी रंग बिरंगे ० ।।४६।।

“समान, महासमान मानुस (=मानुष), मानुषोत्तम (=मानुसुत्तम),

क्रीडाप्रदूषिक (=खिड्डापदूसिक) और मनोपदूसिक देवता आये है ।।४७।।

“लोहित नगरके रहनेवाले हरि देवता आये है ।

पारग और महापारग नामक यशस्वी देवता आये है ।।४८।।

“ये दस, दस प्रकारके शरीरवाले, सभी रग विरगे ० ।।४९।।

“सुक्क, करम्भ और अरुण, वेसनसके साथ आये है ।

अवदातगृह नामक प्रमुख विचक्षण देवता आये है ।।५०।।

“सदामत्त, हारगज, और यशस्वी मिस्सक आये है।

पज्जुन्न अपने रहनेकी दिशासे गरजते हुए आये है ।।५१।।

“ये दस, दस प्रकारके शरीरवाले ० ।।५२।।

“खेमिय, तुषित, याम और यशस्वी कट्ठक (आये है) । लम्बितक, लोमसेट्ठ,

जोति और आसव नामक निम्माणरति और परिनिर्म्मित देवता आये है ।।५३।।

“ये दस, दस प्रकारके शरीरवाले ० ।।५४।।

“और दूसरे इसी प्रकारके साठ देव-समुदाय

नाना नाम और जातिके आये है ।।५५।।

“जन्मरहित, रागादिरहित, भव-पार (=जिसने चार ओधोको पार कर लिया है),

आस्त्रवरहित, कालिमारहित चन्द्रमा जैसे नागको देखगे ।।५६।।

“सुब्रह्मा, परमत्थ और ऋद्धिमानके पुत्र,

सनत्कुमार और तिस्स भी ० आये है ।।५७।।

“ब्रह्मलोकवासी हजारोके ऊपर रहेनेवाला ब्रह्मलोकमे उत्पन्न,

द्युतिमान् भीमकायधारी और यशस्वी महाब्रह्मा ।।५८।।

प्रत्येक वशवर्ती लोकके दस स्वामी (=ईश्वर) आये है ।

उनसे धिरा हारित भी आया है ।।५९।।

३-मारका भी सदलबल पहुचना

“इन्द्र और ब्रह्माके साथ सभी देवोके आनेपर मार सेना भी आ धमकी ।

मारकी यह मूर्खता देखो ।।६०।।

“आओ, पकळो, बॉधो, रागसे सभीको वशमे कर लो,

चोरो ओरसे घेर लो, कोई किसीको न छोळो ।।६१।।

“हाथसे जमीनको ठोक, भैख स्वर (महानाद) करके, जैसे वर्षाकालमे

मेघ बिजलीके साथ गरजता है, उस तरह (गर्जकर)

मारने अपनी बळी भारी सेनाको भेजा ।।६३।।

“तब क्रोधसे भरा मार आया । उन सबोको जानकर सर्वद्रष्टा भगवान् ० ।।६३।।

“शास्ताने शासनमे रत श्रावकोको संबोधित किया—

‘मार-सेना आई हुई है । इसे भिक्षुओ । जान लो’ ।।६४।।

“बुद्धकी बातको सुनकर वे वीर्यपूर्वक सचेत हो गये ।

(मार सेना) वीतराग (भिक्षुओ)से (हारकर) भाग चली ।

उनके एक बालको भी टेढा न कर सकी ।।६५।।

“वे सभी प्रसिद्ध, संग्राम-विजयी निर्भय और यशस्वी श्रावक वीतराग आर्योके साथ मुदित है” ।।६६।।