दीध-निकाय
7. जालिय-सुत्त (१।७)
जीव और शरीरका भेद-अभेद कथन अयुक्त—(१) शीलसे; (२) समाधिसे, (३) प्रज्ञासे ।
ऐसा मैने सुना—एक समय भगवान् कौशाम्बी के घोपिताराममे विहार करते थे । उस समय माण्डिस्स परिब्राजक और दारूपात्रिकके शिष्य जालिय-दो साधु जहॉ भगवान् थे वहॉ गये । जाकर उन्होने भगवानसे कुशल-समाचार पूछा । कुशल-समाचार पूछ लेनेके बाद वे एक ओर खळे हो गये । एक ओर खळे उन साधुओ ने भगवानसे कहा—“आवुस । गौतम । वही जीव है, वही शरीर है या जीव दूसरा और शरीर है ?”
जीव और शरीरका भेद-अभेद कथन व्यर्थ
(भगवानने कहा—) “आवुसो । आप लोग मन लगाकर सुने, मै कहता हूँ” ।
“हॉ आवुस” कह उन साधुओने भगवानको उत्तर दिया ।
१—शीलसे भगवान् बोले—“आवुसो । जब ससारमे तथागत अर्हत्, सम्यक् सम्बुद्ध०१ उत्पन्न होते है । आवुसो । भिक्षु इस प्रकार शील-सम्पन्न होता हे ।
२—समाधिसे ० २प्रथम ध्यानको प्राप्त हो कर विहार करता है । आवुसो । जब वह भिक्षु इस तरह जानता है, इस तरह देखता है, तो क्या उसके लिये यह कहना ठीक है ‘वही जीव है, वही शरीर है, या जीव दूसरा और शरीर दूसरा है ?’ आवुसो । जो वह भिक्षु ऐसा जानता है, ऐसा देखता है, क्या उसका यह कहना ठीक ही है ‘वही जीव ०।’ “आवुसो । मै तो इसे इस तरह जानता हूँ, देखता हूँ, अत मै नही कहता हूँ—वही जीव ०।० २ द्रितीय ध्यान ०।० २ तृतीय ध्यान ०।० २ चतुर्थ ध्यानको प्राप्त हो विहार करता है । वह आवुसो । भिक्षु ऐसा जानता है, ऐसा देखता है, क्या उसका ऐसा कहना ठीक है—‘वही जीव ०? आवुसो । जो वह भिक्षु ऐसा जानता है, देखता है, उसका ऐसा कहना ठीक नही है ‘वह जीव ०।’
३—प्रज्ञासे “आवुसो । मै तो इसे इस तरह जानता हूँ, देखता हूँ, अत मै नही कहता हूँ—‘वही जीव ०—ज्ञानप्राप्तिके लिये चित्तको लगाता है । आवुसो । जो भिक्षु ऐसा जानता है, ऐसा देखता है, उसका ऐसा कहना क्या ठीक है, ‘वही जीव’ ? आवुसो । जो वह भिक्षु ऐसा जानता है, देखता है, उसका ऐसा कहना ठीक नही है—‘वही जीव०।”
“आवुसो । मै तो इसे इस तरह जानता हूँ, इस तरह देखता हूँ, अत मै नही कहता हूँ—‘वही जीव ०’ । आवुसो । जो भिक्षु ऐसा जानता है, ऐसा देखता है, क्या उसका ऐसा कहना ठीक है, ‘वही
जीव ० ?’ आवुसो । जो वह भिक्षु ऐसा जानता हे, ऐसा देखता है, उसका ऐसा कहना ठीक नही, ‘वही जीव ० ।
“आवुसो । मे तो इसे इस तरह जानता हूँ, इस तरह देखत हूँ, अत मै नही कहता हूँ ‘वही’ जीव०।”
भगवानने यह कहा । उन साधुओने प्रसन्नता-पूर्वक भगवानके कथनका अभिनन्दन किया ।