मज्झिम निकाय

23. वम्मिक-सुत्तन्त

ऐसा मैंने सुना—

एक समय भगवान् श्रावस्ती के अनाथ-पिंडिक के आराम जेतवन में विहार करते थे। उस समय आयुष्मान् कुमार काश्यप अन्धवन में विहार करते थे। तब उजेली रात में कोई अभिक्रान्त वर्ण (= प्रकाशमय) देवता सारे अन्धवन को प्रभासित कर, जहाँ आयुष्मान् कुमार कश्यप थे वहाँ जाकर, एक ओर खडा हुआ। एक ओर खड़े हुये उस देवता ने आयुष्मान् कुमार काश्यप से यह कहा—

“भिक्षु! भिक्षु! यह वल्मीक रात को धुँधुँवाता (= धुँवा देता) है, दिन को बलता (= ज्वलित होता) है। ब्राह्मण ने ऐसा कहा—

“सुमेध! शस्त्र ले अभीक्षण (= काट)।’

सुमेध ने शस्त्र ले काटते लंगी को देखा—‘लंगी है भदन्त (= स्वामी)!’

ब्राह्मण ने यह कहा—‘लंगी को फेक, सुमेध! शस्त्र ले काट।’

सुमेध ने ॰ धुँधुँवाना देखा—‘धुँधुँवता है, भदन्त!’

ब्राह्मण ने यह कहा—‘धुँधुँवाने को फेंक, सुमेध! ॰।’

सुमेधने ॰ दो रास्ते देखे—‘दो रास्ते हैं, भदन्त!’

ब्राह्मण ने ॰—‘दो रास्ते फेंक (= छोड), सुमेध! ॰।

सुमेध ने ॰ चंगवार (= चगौरा=टोकरा) देखा—‘चंगवार है, भदन्त!’

ब्राह्मण ने ॰—‘चंगवार फेंक दे, सुमेध! ॰।’

सुमेध ने ॰ कूर्म (= कछुवा) देखा—‘कूर्म है, भदन्त!’

ब्राह्मण ने ॰—कूर्म फेंक दे, सुमेध! ॰।’

सुमेध ने ॰ असिसूना (= पशु मारने का पीढ़ा) देखा—‘असिसूना है, भदन्त!’

ब्राह्मण ने ॰—‘असिसूना फंेक दे, सुमेध! ॰।’

सुमेध ने ॰ मांसपेशी (= मांस का टुकडा) देखा—‘मांसपेशी है, भदन्त!’

ब्राह्मण ने ॰—‘मांसपेशी फंेक दे, सुमेध! ॰।’

सुमेध ने ॰ नाग देखा—‘नाग है, भदन्त!’

ब्राह्मण ने ॰—‘रहने दे नाग को, मत उसे धक्का दे, नाग को नमस्कारी कर।’

“भिक्षु! इन प्रश्नों को तुम भगवान् के पास जाकर पूछना। भगवान् जैसा इसका उत्तर दें, उसे धारण करना। भिक्षु! देव-मार-ब्रह्मा सहित सारे लोक में, श्रमण-ब्राह्मण देव-मानुष सहित सारी प्रजा में, मैं ऐसे (पुरूष) को नहीं देखता, जो इस प्रश्न का उत्तर दे चित्त को सन्तुष्ट करें; सिवाय तथागत, तथागत-श्रावक या यहाँ से सुने हुये के।”

वह देवता यह कह कर वहीं अन्तध्र्यान हो गया।

तब आयुष्मान् कुमार काश्यप उस रात के बीतने पर जहाँ भगवान् थे, वहाँ जाकर, अभिवादनकर, एक ओर…बैठ, भगवान् से यह बोले—

“भन्ते! आज रात को एक अभिक्रान्तवर्ण देवता सारे अन्धवन को प्रभासित कर, जहाँ मैं था, वहाँ आकर एक ओर खड़ा हुआ, एक ओर खड़ा हो उस देवता ने मुझे यह कहा—॰। वह देवता यह…कहकर वहीं अन्तध्र्यान हो गया।

“भन्ते! (1) क्या है वल्मीक? (2) क्या है रात का धुँधुँवाना? (3) क्या है दिन का धधकना? (4) कौन है ब्राह्मण? (5) कौन है सुमेध? (6) क्या है शस्त्र? (7) क्या है अभीक्षण (= काटना)? (8) क्या है लंगी? (9) ॰ धुँधुँवाना? (1॰) ॰ दो रास्ते? (11) ॰ चंगवार? (12) ॰ कूर्म? (13) ॰ असि-सूना? (14) ॰ मांसपेशी? (15) क्या है नाग?”

“भिक्षु! (1) वल्मीक यह माता-पिता से उत्पन्न भात-दाल से बर्धित, इसी चातुर्महा-भौतिक काया का नाम है, जो कि अनित्य तथा, उत्सादन (= हटाने) मर्दन, भेदन, विध्वंसन स्वभाव वाला है। (2) भिक्षु! जो दिन के कमों के लिये रात को सोचता है, विचारता है, यही रात का धुँधुँवाना है। (3) भिक्षु! जो कि रात को सोच विचार कर दिन को काया और वचन से कामों में योग देता है, यह दिन का धधकना है। (4) ब्राह्मण यह तथागत, अर्हत्, सम्यक्-संबुद्ध का नाम है। (5) समेध यह शैक्ष्य (= जिसको शिक्षा की अभी आवश्यकता है, ऐसा निर्वाण-मार्गारूढ व्यक्ति) भिक्षु का नाम है। (6) ॰ शस्त्र (= हथियार) यह आर्य प्रज्ञा (= उत्तम ज्ञान) का नाम है। (7) ॰ अभीक्षण (= काटना) यह वीर्यारम्भ (= उद्योग) का नाम है। (8) ॰ लंगी अविद्या का नाम है। ‘लंगी को फेंक, सुमेध!’ अविद्या को छोड, सुमेध! शस्त्र ले काट—यह इसका अर्थ है। (9) ॰ धुँधुँआना यह क्रोध की परेशानी का नाम है; धुँधुँअना फेंक दे, सुमेध! क्रोध-उपायास को छोड, शस्त्र ले काट—यह इसका अर्थ है। (10) ॰ दो रास्ते (= द्विधापथ) यह विचिकित्सा (= संशय) का नाम है। दो रास्ते फंेक दे, विचिकित्सा छोड, सुमेध! ॰। (11) ॰ चंगवार यह पाँच नीवरणों (= आवरणों) का नाम है, (जैसे कि) कामच्छन्द (= भोगों में राग)-नीवरण, व्यापाद (= परपीड़ाकरण)-नीवरण, स्त्यानमृद्ध (= कायिक मानसिक आलस्य)-नीवरण, औद्धत्य-कौकृत्य (= अच्छृखलता और पश्चाताप)-नीवरण, विचिकित्सा (= संशय)-नीवरण। ‘चंगवार फंेक दे’—पाँच नीवरणों को छोड दे, सुमेध! ॰। (12) ॰ कूर्म यह पाँच उपादान-स्कंधो का नाम है, जैसे कि—रूप-उपादान-स्कन्ध, वेदना ॰, संज्ञा ॰, संस्कार ॰, विज्ञान ॰। ‘कूर्म को फंेक दे’—अर्थात् पाँच उपादान स्कंधो को छोड, सुमेध! ॰। (13) ॰ असिसूना यह पाँच काम-गुणों (= भोगो) का नाम है, (जैसे कि) इष्ट कान्त मनाप=प्रिय, कमनीय, रंजनीय चक्षु द्वारा विज्ञेय रूप ॰, श्रोत्र-विज्ञेय शब्द ॰, घ्राण-विज्ञेय गंध ॰, जिह्वा; विज्ञेय रस-इष्अ, कान्त, मनाप=प्रिय, कमनीय=रंजनीय काय-विज्ञेय स्प्रष्टव्य। ‘असिसूना फेंक दे’—पाँच कामगुणों को छोड, सुमेध! ॰। (14) मांसपेशी यह नन्दी=राग का नाम है। ‘मांसपेशी फेंक दे’—नन्दी राग को छोड दे, सुमेध! ॰। (15) भिक्षु! नाग यह क्षीणास्रव (= अर्हत्) भिक्षु का नाम है। रहने दे नाग को, मत उसे धक्का दे, नाग को नमस्कार कर, यह इसका अर्थ है।”

भगवान् ने यह कहा, सन्तुष्ट हो आयुष्मान् कुमार-काश्यप ने भगवान् के भाषण का अभिनन्दन किया।