मज्झिम निकाय
33. महा-गोपालक-सुत्तन्त
एक समय भगवान् श्रावस्ती में अनाथ-पिंडिक के आराम जेतवन में विहार करते थे।
वहाँ भगवान् ने भिक्षुओं को संबोधित किया—“भिक्षुओ!”
“भदन्त!” (कह) उन भिक्षुओं ने भगवान् को उत्तर दिया।
भगवान् ने यह कहा—“भिक्षुओ! ग्यारह बातों (= अंगो) से युकत गोपालक गोयुथ की रक्षा करने के अयोग्य है। कौन से ग्यारह?—(1) गोपालक रूप (= वर्ण) का जानने वाला नहीं होता; (2) लक्षण (= चिह्न) में भी चतुर नहीं होता; (3) काली मक्खियों को हटाने वाला नहीं होता; (4) घाव का ढाँकने वाला नहीं होता; (5) धुआँ नहीं करता; (6) तीर्थ (= जल का उतार) नहीं जानता; (7) पान को नहीं जानता; (8) वीथी (= डगर) को नही जानता; (9) चरागाह का जानकार नहीं होता; (1॰) बिना छोड़े (सारे) को दूह लेता है; (11) जो वह गायो के पितर गायों के स्वामी वृषभ (= साँड) हैं उनकी अधिक पूजा (= भोजनादि प्रदान) नहीं करता। भिक्षुओ! इन ग्यारह बातों से युक्त गोपालक गोयूथ की रक्षा करने के अयोग्य है।
“ऐसे ही भिक्षुओ! ग्यारह बातो से युकत भिक्षु इस धर्म-विनय (= बुद्धधर्म) में वृद्धि विरूढ़ि=विपुलता पाने के अयोग्य हैं। कौन से ग्यारह?—यहाँ भिक्षुओ! भिक्षु (1) रूप का जानने वाला नहीं होता; (2) लक्षण में भी चतुर नहीं होता; (3) आसाटिकों (= काली मक्खियों) को हटाने वाला नहीं होता; (4) व्रण (= घाव) का ढाँकने वाला नहीं होता; (5) धुआँ नहीं करता; (6) तीर्थ नहीं जानता; (7) पान को नहीं जानता; (8) वीथी को नहीं जानता; (9) गोचर (= चरागाह) को नहीं जानता; (1॰) बिना छोड़े (= अशेष का) दूहने वाला होता है; (11) जो वह रक्तज्ञ (= अनुरक्त) चिरकाल से प्रब्रजित, सघ के पितर, संघ के नायक स्थविर भिक्षु हैं उन्हें अतिरिक्त पूजा से पूजित नहीं करता।
“कैसे भिक्षुओ! भिक्षु रूप का न जानने वाला होता?—यहाँ भिक्षुओ! जो कोई रूप है, वह सब चार महाभूत (= पृथ्वी, जल, वायु, तेज) और चारों भूतो को लेकर बना है। उसे यथार्थ से नहीं जानता। इस प्रकार भिक्षुओ! भिक्षु रूप का न जानने वाला होता है।”
“कैसे भिक्षुओ! भिक्षु लक्षण में चतुर नहीं होता?—यहाँ भिक्षुओ! भिक्षु यह यथार्थ से नहीं जानता कि कर्म के लक्षण (= कारण) से बाल (= अज्ञ) होता है और कर्म के लक्षण से पंडित होता है इस प्रकार ॰।
“कैसे भिक्षुओ! भिक्षु आसाटिक का हटाने वाला नहीं होता?—यहाँ भिक्षुओ! भिक्षु उत्पन्न काम (= भोग-वासना) के वितर्क का स्वागत करता है, छोडता नहीं, हटाता नहीं, अलग नहीं करता, अभाव को नहीं प्राप्त करता; उत्पन्न व्यापाद (= पर-पीडा) के वितर्क को ॰; उत्पन्न हिंसा के वितर्क को; ॰ बराबर उत्पन्न होती बुराइयों=अकुशल धर्मों का स्वागत करता है ॰। इस प्रकार ॰।
“कैसे भिक्षुओ! भिक्षु ब्रण का ढाँकने वाला नहीं होता है?—यहाँ भिक्षुओ! भिक्षु आँख के रूप देखकर उसके निमित्त (= अनुकूल प्रतिकूल होने) का ग्रहण करने वाला होता है, अनुव्यंजन (= पहिचान) का ग्रहण करने वाला होता है। जिस विषय में इस चक्षु-इन्द्रिय को संयत न रखने पर लोभ और दौर्मनस्य (रूपी) बुराइयाँ=अकुशल धर्म आ चिपटते है, उससे संयम करने के लिये तत्पर नहीं होता। चक्षु इन्द्रिय की रक्षा नहीं करता; चक्षु इन्द्रिय से संयम (= संवर) में लग्न नहीं होता। श्रोत्र से शब्द सुनकर ॰। घ्राण से गंध सूँघ कर ॰। जिह्वा से रस चख कर ॰। काया से स्प्रष्टव्य को स्पर्श कर ॰। मन से धर्म को जानकर निमित्त का ग्रहण करने वाला होता है ॰ मन-इंद्रिय के संयम में लग्न नहीं होता। इस प्रकार भिक्षुओ ॰!
“कैसे भिक्षुओ! भिक्षु धूम का न करने वाला होता है?—यहाँ भिक्षुओ! भिक्षु सुने अनुसार, जाने अनुसार, धर्म को दूसरों के लिये विस्तार से उपदेश करने वाला नहीं होता, इस प्रकार ॰।
“कैसे भिक्षुओ! भिक्षु तीर्थ को नहीं जानता?—यहाँ भिक्षुओ! जो वह भिक्षु बहु-श्रुत, आगम-प्राप्त, धर्म-धर, विनय-धर, मात्रिका-धर, हैं उनके पास समय समय पर जाकर नहीं पूछता, नहीं प्रश्न करता—भन्ते! यह कैसे, इसका क्या अर्थ है? उसके लिये वह आयुष्मान्, अविवृत को विवृत (= खोलकर बतलाना) नहीं करते; अस्पष्ट को स्पष्ट नहं करते अनेक प्रकार के शंका-स्थान वाले धर्मों में उठी शंका का निवारण नहीं करते। इस प्रकार ॰।
“कैसे भिक्षुओ! भिक्षु पान को नहीं जानता—यहाँ भिक्षुओ! भिक्षु तथागत के बतलाये धर्म-विनय के उपदेश किये जाते समय (उसके) अर्थ-वेद (= अर्थ-ज्ञान) को नहीं पाता, धर्म-वेद को नहीं पाता, धर्म संबंधी प्रमोद (= खुशी) को नहीं पाता। इस प्रकार ॰।
“कैसे भिक्षुओ! भिक्षु वीथी को नहीं जानता?—यहाँ भिक्षुओं! भिक्षु आर्य-अष्टांगिक मार्ग को ठीक ठीक नहीं जानता। इस प्रकार ॰।
“कैसे भिक्षुओ! भिक्षु गोचर में कुशल नहीं होता?—यहाँ भिक्षुओ! भिक्षु चार स्मृति-प्रस्थानों को ठीक ठीक नहीं जानता। इस प्रकार ॰।
“कैसे भिक्षुओ! भिक्षु अशेष का दूहने वाला होता है?—यहाँ भिक्षुओ! भिक्षु को श्रद्धालु गृहपति वस्त्र, भिक्षान्न, निवास, आसन, रोगी के (उपयोगी) पथ्य-औषध की सामग्रियों से अच्छी तरह संतुष्ट करते हैं; वहाँ भिक्षु मात्रा से ग्रहण करना नहीं जानता। इस प्रकार ॰।
“कैसे भिक्षुओ! भिक्षु ॰ स्थविर भिक्षुओं को अतिरिक्त पूजा से पूजित नहीं करता?—यहाँ भिक्षुओ! भिक्षु ॰ ॰ जो वह स्थविर भिक्षु है, उनके लिये गुप्त और प्रकट मैत्री-युक्त कायिक कर्म नहीं करता; ॰ वाचिक कर्म नहीं करता; ॰ मानस-कर्म नहीं करता। इस प्रकार भिक्षुओ ॰
“भिक्षुओं! इन ग्यारह धर्मो से युक्त भिक्षु इस धर्म-विनय में वृद्धि विरूढ़ि को प्राप्त करने में अयोग्य है।
“भिक्षुओ! ग्यारह अंगो से युक्त गोपालक गोयूथ की रक्षा करने के योग्य होता है। कौन से ग्यारह?—यहाँ भिक्षुओं! गोपालक (1) रूप का जानने वाला होता है; (2) लक्षण-कुशल होता है; (3) असाटिक का हटाने वाला होता है; (4) व्रण का ढाँकने वाला होता है; (5) धुआँ करने वाला होता है; (6) तीर्थ को जानता है; (7) पीत (= पान) को जानता है; (8) वीथी को जानता है; (9) गोचर-कुशल होता है; (10) स-शेष दूहने वाला होता है; (11) जो वह वृषभ ॰ उन्हें अतिरिक्त पूजा से पूजित करता है। भिक्षुओ! इन ग्यारह बातों से युक्त गोपालक गोयूथ के धारण करने, बढ़ाने के योग्य होता है। इसी प्रकार भिक्षुओ! ग्यारह धर्मो से युक्त भिक्षु इस धर्म-विनय में वृद्धि=विरूढ़ि=विपुलता प्राप्त करने योग्य है। कौन से ग्यारह?—यहाँ भिक्षुओ! भिक्षु (1) रूप का जानने वाला होता है ॰। (11) जो वह भिक्षु ॰ उन्हें अतिरिक्त पूजा से पूजित करता है।
“कैसे भिक्षुओ! भिक्षु रूप का जानने वाला होता है?—यहाँ भिक्षुओ! भिक्षु जो कुछ रूप है ॰ उसे यथार्थ से जानता है। इस प्रकार ॰।
“कैसे भिक्षुओ! भिक्षु लक्षण-कुशल होता है?—यहाँ भिक्षुओ! भिक्षु इसे यथार्थ से जानता है कि कर्म-लक्षण से बाल होता है और कर्म-लक्षण से पंडित। इस प्रकार ॰।
“॰उत्पन्न काम-वितर्क ॰ व्यापाद-वितर्क ॰ हिंसा-वितर्क ॰ लोभ, दौर्मनस्य (रूपी) बुराइयों=अकुशल धर्मो का स्वागत नहीं करता ॰। इस प्रकार ॰।
“चक्षु से रूप को देखकर निमित्त-ग्राही नहीं होता ॰ इस प्रकार ॰।
“॰ धुएँ का करने वाला होता है?—सुने अनुसार, जाने अनुसार, दूसरों के लिये धर्म को विस्तार से उपदेश करता है। इस प्रकार ॰।
“कैसे ॰ तीर्थ को जानता है?—॰ बहु-श्रुत भिक्षुआंे के पास समय समय पर जाकर प्रश्न पूछता है ॰। इस प्रकार ॰।
“कैसे ॰ पीत को जानता है!— ॰ तथागत के बतलाये धर्म और विनय के उपदेश किये जाते समय अर्थवेद को पाता है ॰। इस प्रकार ॰।
“कैसे ॰ वीथी को जानता है?— ॰ आर्य-अष्टांगिक मार्ग को ठीक ठीक जानता है। इस प्रकार ॰।
“कैसे ॰ गोचर कुशल होता है?—॰ चारों स्मृति-प्रस्थानों को ठीक ठीक जानता है। इस प्रकार ॰।
“कैसे ॰ स-शेष दुहने वाला होता है— ॰ रोगी के पथ्य औषध आदि सामग्री देते है; उसके ग्रहण करने में मात्रा को जानता है। इस प्रकार ॰।
“कैसे भिक्षुओ! ॰ स्थविर भिक्षुओ को अतिरिक्त पूजा से पूजित करता है?—॰ उन स्थविर भिक्षुओं के लिये गुप्त और प्रकट मैत्रीयुक्त कायिक कर्म करता है; ॰ वाचिक कर्म ॰; ॰ मानसिक कर्म करता है। इस प्रकार ॰।
“भिक्षुओं! इन ग्यारह धर्मो (= बातों) से युक्त भिक्षु इस धर्म-विनय में वृद्धि=विरूढ़ि=विपुलता को प्राप्त होने योग्य है।”
भगवान् ने यह कहा। संतुष्ट हो उन भिक्षुओं ने भगवान् के भाषण का अभिनंदन किया।