मज्झिम निकाय

61. अम्ब-लट्ठिका-राहुलोवाद-सुत्तन्त

ऐसा मैंने सुना—

एक समय भगवान् राजगृह के वेणुवन कलन्दकनिवाप में विहार करते थे। उस समय आयुष्मान् राहुल अम्बलट्ठिका में विहार करते थे। तब भगवान् सायंकाल को ध्यान से उठ, जहाँ अम्बलट्ठिका वन में आयुष्मान् राहुल (थे) वहाँ गये। आयुष्मान् राहुल ने दूर से ही भगवान् को आते देखा; देखकर आसन बिछाया, पैर धोने के लिये पानी रक्खा। भगवान् ने बिछाये आसन पर बैठ पैर धोये। आयुष्मान् राहुल भी भगवान् को अभिवादन कर एक ओर बैठ गये।

तब भगवान् ने थोडा सा बचा पानी लोटे में छोड, आयुष्मान् राहुल को सम्बोधित किया—

“राहुल! लोटा के इस थोडे से बचे पानी को देखता है?”

“हाँ भन्ते!”

“राहुल! ऐसा ही थोड़ा उनका श्रमण-भाव (= साधुता) हैं, जिनको जानबुझकर झूठ बोलने में लज्जा नहीं।”

तब भगवान् ने उस थोडे से बचे जल को फेंककर आयुष्मान् राहुल को संबोधित किया—

“राहुल! देखा मैंने उस थोड़े से जल को फेंक दिया?”

“हाँ भन्ते!”

“ऐसा ही ‘फेंका’ उनका श्रमण-भाव भी है, जिनको जानबूझकर झूठ बोलने में लज्जा नहीं।”

तब भगवान् ने उस लोटे को औंधा कर, आयुष्मान् राहुल को संबोधित किया—

“राहुल! तू इस लोटे को औंधा देखता है?”

“हाँ, भन्ते!”

“ऐसा ही ‘औंधा’ उनका श्रमण-भाव हैं, जिनको जान बूझकर झूठ बोलते लज्जा नहीं ।”

तब भगवान् ने उस लोटे को सीधाकर आयुष्मान् राहुल को संबोधित किया—

“राहुल! इस लोटे का तू सीधा किया देख रहा है? खाली देख रहा है?”

“हाँ भन्ते!”

“ऐसा ही खाली तुच्छ उनका श्रमण-भाव है, जिनको जान बूझकर झूठ बोलने में लज्जा नहीं। जैसे राहुल! हरिस-समान लम्बे दातों वाला, महाकाय, सुन्दर जाति का, सग्राम में जाने वाला, राजा का हाथी, संग्राम में जाने परा, अगले पैरो से भी (लडाई का) काम करता है। पिछले पैरों से भी काम करता है। शरीर के अगले भाग से भी काम करता है। शरीर के पिछले भाग से भी काम करता है। शिर से काम करता है। काय से भी काम करता है। दाँत से भी काम करता है। पूँछ से भी काम लेता है। लेकिन सूँड को (बेकाम) रखता है। तो हाथीवान् को ऐसा (विचार) होता है—‘यह राजा का हाथी हरिस जैसे दाँतो वाला ॰ पूँछ से भी काम लेता है, (लेकिन) सूँड को (बेकाम) रखता है। राजा के ऐसे नाग का जीवन अविश्वसनीय है’।

“लेकिन यदि राहुल! राजा का हाथी हरिस जैसे दाँतवाला ॰, पूँछ से भी काम करता है, सूँड से भी काम लेता है, तो राजा के हाथी का जीवन विश्वसनीय है; अब राजा के हाथी को और कुछ करना नहीं है। ऐसे ही राहुल! ‘जिसे जानबूझकर झूठ बोलने में लज्जा नहीं; उसके लिये कोई भी पाप-कर्म अकरणीय नहीं’—ऐसा मैं मानता हूँ। इसलिये राहुल! ‘हँसी में भी नहीं झूठ बोलूँगा’, —यह सीख लेनी चाहिये।

“तो क्या जानते हो, राहुल! दर्पण किस काम के लिये है?”

“भन्ते! देखने के लिये।”

“ऐसे ही राहुल! देख देखकर काया से काम करना चाहिये। देख देखकर वचन से काम करना चाहिये। देख देखकर मन से काम करना चाहिये।

“जब राहुल! तू काया से (कोई) काम करना चाहे, तो तुझे काया के काम पर विचार करना चाहिये—जो मैं यह काम करना चाहता हूँ, क्या यह मेरा काय-धर्म अपने लिये पीडादायक तो नहीं हो सकता? दूसरें के लिये पीडा-दायक तो नहीं हो सकता? (अपने और पराये) दोनों के लिये पीडा-दायक तो नहीं हो सकता? यह अ-कुशल (= बुरा) काय-कर्म है, दुःख का हेतु=दुःख का विपाक (= ॰ भोग) देने वाला है? यदि तू राहुल! प्रत्यवेक्षा (= देखभाल=विचार) कर ऐसा जाने—‘जो मैं यह काया से काम करना चाहता हूँ ॰। यह बुरा काय-कर्म है।’ ऐसा राहुल! काय-कर्म सर्वथा न करना चाहिये। यदि तू राहुल! प्रत्यवेक्षाकर ऐसा समझे, —‘जो मैं यह काया से काम करना चाहता हूँ, वह काय-कर्म न अपने लिये पीडा-दायक हो सकता है, न पर के लिये ॰। यह कुशल (अच्छा) काय-कर्म है, सुख का हेतु=सुख-विपाक है’। इस प्रकार का कर्म राहुल! तुझे काया से करना चाहिये।

“राहुल! काया से काम करते हुये भी, काय-कर्म का प्रत्यवेक्षण (= परीक्षा) करना चाहिये—‘क्या जो मैं यह काया से काम कर रहा हूँ, यह मेरा काय-कर्म अपने लिये पीडा-दायक है ॰।’ यदि तू राहुल ॰ जाने। ॰ यह काय-कर्म अकुशल है ॰। तो राहुल! इस प्रकार के काय-कर्म को छोड देना। ॰ यदि ॰ जाने। ॰ यह काय-कर्म कुशल है, तो इस प्रकार के काय-कर्म को राहुल! बार बार करना।

“काय-कर्म करके भी राहुल! तुझे काय-कर्म का फिर प्रत्यवेक्षण करना चाहिये—‘क्या जो मैंने यह काय-कर्म किया है, वह मेरा काय-कर्म अपने लिये पीडादायक है ॰। यह कायकर्म अकुशल है ॰।’ ॰ जाने। ॰ अकुशल है। तो राहुल इस प्रकार के काय-कर्म को शास्ता के पास, या विज्ञ गुरू-भाई (= सब्रह्मचारी) के पास कहना चाहिये, खोलना चाहिये=उतान करना चाहिये। कह कर, खोलकर=उतानकर, आगे की संयम करना चाहिये। यदि राहुल! तू प्रत्यवेक्षण कर जाने। ॰ कुशल हैं। तो दिन रात कुशल (= उत्तम) धर्मो (= बातों) में शिक्षा ग्रहण करने वाला बन। राहुल! इससे तू प्रीति=प्रमोद से विहार करेगा।

“यदि राहुल! तू वचन से काम करना चाहे ॰। ॰ कुशल वचन-कर्म ॰ करना। ॰ बार बार करना। ॰ उससे तू ॰ प्रीति=प्रमोद से विहार करेगा।

“यदि राहुल! तू मन से काम करना चाहे ॰। ॰ कुशल मन-कर्म ॰ करना। ॰ बार बार करना। मन-कर्म करके ॰ यह मनकर्म अकुशल है ॰। सो इस प्रकार के मन-कर्म में खिन्न होना चाहिये, शोक करना चाहिये, घृणा करनी चाहिये। खिन्न हो, शोक कर, घृणा कर आगे को संयम करना चाहिये। ॰ यह मन-कर्म कुशल है ॰। उससे तू ॰ प्रमोद से विहार करेगा।

“राहुल! जिन किन्हीं श्रमणों (= भिक्षुओं) या ब्राह्मणों (= सन्तों) ने अतीत-काल में काय-कर्म ॰, वचन-कर्म ॰, मन-कर्म ॰ परिशोधित किये। उन सबों ने इसी प्रकार प्रत्यवेक्षण कर काय, वचन, मन-कर्म, परिशोधित किये। जो कोई राहुल! श्रमण या ब्राह्मण भविष्यकाल में भी काय, वचन, मन-कर्म परिशोधित करेंगे; वह सब इसी प्रकार ॰। जो कोई राहुल! श्रमण या ब्राह्मण आजकल भी काय, वचन, मन-कर्म परिशोधित करते हैं; वह सब भी इसी प्रकार ॰।

“इसलिये राहुल! तुझे सीखना चाहिये कि मैं प्रत्यवेक्षण कर काय-कर्म ॰, ॰ वचन-कर्म, ॰ मन-कर्म का परिशोधन करूँगा।”